हिंदुस्तान में फ़िल्म उद्योग केवल मुंबई में ही नहीं है। कलकत्ता, बैंगलोर, चेन्नई, तिरुवनन्तपुरम, और हैदराबाद में स्थित क्रमशः बंगाली , कन्नड़, तमिल, मलयालम, तेलुगु फिल्म उद्योग की जड़ें 100 साल से अधिक पुरानी हैं। यहां स्टारों पर पैसा भी पानी की तरह बरसता है। रजनीकांत और विजयाशांति सरीखे स्टार मुंबई के बॉलीवुड के तथाकथित सुपरस्टार्स से ज्यादा फीस लेते रहे हैं। एनटी रामाराव, एमजी रामचंद्रन लोकप्रियता के जिस शिखर पर पहुंचे उस ऊंचाई तक राजेश खन्ना को छोड़कर बॉलीवुड का कोई अभिनेता उस ऊंचाई के आसपास आज तक नहीं पहुंचा |
भारतीय फिल्म इतिहास की सबसे महंगी, सबसे सफल फ़िल्म बाहुबली भी दक्षिण में ही बनी है। लेकिन क्या यह आश्चर्यजनक तथ्य नहीं है कि दक्षिण भारतीय फ़िल्मो के 100 वर्ष लंबे इतिहास में एक भी सुपरस्टार मुस्लिम नही हुआ। जबकि केरल में लगभग 30% तथा आंध्र में लगभग 15% जनसंख्या मुस्लिम है। लगभग 30% मुस्लिम जनसंख्या वाले बंगाल का फ़िल्म उद्योग भी 100 साल पुराना है। एक से बढ़कर एक उत्कृष्ट फिल्में बंगाल के फ़िल्म इंडस्ट्री ने दी है। हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री में धूम मचाने वाले विमल रॉय, ऋषिकेश मुखर्जी, शक्ति सामंत, असित सेन सरीखे अद्वितीय फ़िल्म निर्देशक बॉलीवुड को बंगाल की फ़िल्म इंडस्ट्री से ही मिले थे। लेकिन आश्चर्य की बात है कि उस बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री में भी आजतक कोई सुपरस्टार तो छोड़िए कोई स्टार तक कोई मुस्लिम नहीं बना। लगभग यही स्थिति उसी मुंबई में स्थित उन मराठी फिल्मों की भी है, जिनका बहुत समृद्ध इतिहास है। महाराष्ट्र में मुस्लिम जनसंख्या भी लगभग 15 प्रतिशत है। लेकिन एक भी सुपरस्टार या स्टार आजतक मुस्लिम नहीं हुआ। यहां तक कि भोजपुरी फिल्मों में भी यही स्थिति है।
आखिर क्या वजह है कि सारा मुस्लिम टेलेंट केवल मुंबई फ़िल्म इंडस्ट्री में ही नजर आता है.? शतप्रतिशत भावहीन चेहरे और आंखों वाला अभिनय शून्य हट्टा कट्टा मुश्टंडा सलमान बॉलीवुड का सबसे बड़ा स्टार बन जाता है। बॉलीवुड में उसके मूत से चिराग जलने की खबरें आम हो जाती हैं। निहायत औसत दर्जे के हकले अभिनेता शाहरुख के हकलाने को उसकी अदा बना दिया जाता है। वो किंग खान बन जाता है। वर्तमान संचार क्रांति के युग में आज यूट्यूब पर हर दौर के हर अभिनेता की फिल्में मुफ्त उपलब्ध हैं। खुद देखिए और तय करिए कि क्या सत्यकाम, अनुपमा, बंदिनी, फूल और पत्थर में धर्मेंद्र तथा आनंद, खामोशी, अमर प्रेम, सफ़र में राजेश खन्ना के यादगार अभिनय वाली एक भी फ़िल्म हकले और मुश्टंडे की जोड़ी के पास नहीं है। लेकिन यह जोड़ी 20-25 साल से बॉलीवुड की खोपड़ी पर नाच रही है।
आखिर क्यों.?क्या कारण है कि चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता, तिरुवनन्तपुरम की फ़िल्म इंडस्ट्री के 100 साल के इतिहास में कोई मुस्लिम सुपरस्टार नहीं हुआ। लेकिन बॉलीवुड में पिछले 25-30 सालों में मुस्लिम के अलावा कोई सुपरस्टार नहीं हुआ। बॉलीवुड में पिछले 3 दशकों से यह उल्टी गंगा क्यों बह रही है.?
1990 के बाद दाऊद इब्राहीम और उसके माध्यम से ISI का बॉलीवुड पर कसता गया शिकंजा ही इसकी वजह है। 1990 के बाद से महाराष्ट्र में शरद पवार का ही राजनीतिक सिक्का चला है। 1993 मुंबई बम विस्फोट के बाद बनायी गयी एनएन वोहरा कमेटी ने संगठित अपराधियों, माफिया, नेताओं की सांठगांठ को बेनकाब करने वाली रिपोर्ट जो रिपोर्ट दी थी उसे आजतक उजागर नहीं किया गया है। हद तो यह है कि उसे उजागर करने पर सुप्रीमकोर्ट ने रोक लगा दी है। जिस दिन यह रिपोर्ट उजागर होगी उस दिन यह भी खुलकर सामने आ जाएगा कि बॉलीवुड में 3 दशकों तक उल्टी गंगा क्यों बहती रही थी.?
यह सुखद संतोष का विषय है कि इस उल्टी गंगा का प्रवाह रोक दिया गया है। वह अब तेजी से सूख रही है। यही कारण है कि इस देश का प्रधानमंत्री बॉलीवुड के निशाने पर है। इसलिए जरूरी है कि इनपर प्रचंड प्रहार करते रहिए। इन्हें दोबारा संभलने उबरने का मौका नहीं मिलना चाहिए।प्रधानमंत्री मोदी ने बॉलीवुड के ज़िहाद माफिया की कमर कैसे तोड़ी है और बॉलीवुड के निशाने पर वो क्यों हैं.? इसकीं चर्चा कल।