बिजली पर लिया गया केजरीवाल का फैसला अब गलत साबित हो रहा है । कई राज्यों में उसे तहजीब नही दी गयी। लोग लालच के दायरे से बाहर निकल गये। सही मायने में देखा जाए तो यह फैसले की नींव़ ही गलत थी जो देश को एक गलत रास्ते पर ले गई। आज जो बिजली संकट है वह केजरीवाल जैसे लोगों की ही देन है। जिसे देशद्रोह की श्रेणी में रखा जाना चाहिये।
अगर मान लिया जाए कि दिल्ली में दो करोड़ लोग रहते हैं और प्रति पर 200 यूनिट की छूट है तो 4 अरब बिजली यूनिट बिना किसी खर्चे के फ्री में बंट रही है यही हाल वह पंजाब का करने वाले हैं, यही हाल राजस्थान में होने वाला है । अगर राज्य सरकारें ऐसे ही बिजली फ्री में बांटती रहेंगी तो उन कंपनियों का क्या होगा जिन पर बिजली उत्पादन व बिजली वितरण का दायित्व है। सरकार कह देती है कि बिजली का पैसा वह भुगतान करेगी लेकिन कर तो नही रही है, कोयला खदानों को भुगतान नहीं मिल रहा है जो बिजली कंपनियां बना रही है उनको भुगतान नहीं मिल रहा है जो वितरण कर रही हैं उन्हें सरकार पैसे वसूलने नहीं दे रही है। जबकि सच यह है कि वह भुगतान करती ही नहीं और ना इस बारे में सोचती है।
यदि कृषि कानून को मान लिया गया होता तो शायद इसका एक हल निकल जाता, इसी कानून में प्रावधान था कि सरकार बिजली की सब्सिडी उपभोक्ताओं के खाते में डालें। वितरण कंपनियों को वसूली के लिए मना नहीं करेंगे, आज हो रहा है कि सरकार कह देती है किसानों को बिजली दी जाएगी या उपभोक्ताओं को इतनी यूनिट बिजली दी जाएगी लेकिन उसका भुगतान कौन करेगा। इस पर कुछ नहीं बोलता । कोयला खदान अपना पैसा जब उत्पादन कंपनी से मागते है तो जबाब मिलता है कि अभी नही है। उत्पादन कंपनी जब वितरण कंपनियों से मांगती है तो जबाब मिलता है कि अभी नही है। तीनो घाटे में चल रहें है। तो बिजली जां कहां रही है ? यह मौज मस्ती कब तक सरकार बिजली के नाम पर करती रहेगी।
सरकार बोलती है कि जो बिजली खर्च होगी। इसके पैसे हम देंगे लेकिन वह समय कभी आता नहीं । यदि कृषि कानून वाला नियम पास हो गया होता तो उपभोक्ताओं को सरकार अपने बजट से सब्सिडी देने के लिए होती क्योंकि वोट लेना है इसलिए उसका भुगतान भी हो जाता। अभी जो भुगतान हो रहा है वह बिजली मद का ना हो करके ,मौज उड़ाया जा रहा है । कोयला खदाने परेशान है । उत्पादन कंपनियां व वितरण कंपनियां के साथ साथ लोग परेशान हैं और नेता मौज कर रहे हैं । यह हमेशा चलने वाला नहीं है किसी न किसी को जवाब देना पड़ेगा नहीं तो बिजली संकट, एक दिन इतना गंभीर हो जाएगा कि पूरे देश में ब्लैक आउट होगा और कोई कुछ कर नहीं पाएगा।
केंद्र सरकार को चाहिए कि जो राज्यों को वह बजट देते हैं उसमें से बिजली के पैसे काट कर दे क्योंकि उनके प्रभाव क्षेत्र में आता है और जिन राज्यों पर बहुत कर्ज बाकी है उन्हें दबाव में लें और उनसे कर्ज की वसूली करें । होता यह है कि राज्य कर्ज ले लेते हैं और कर्ज लेकर उनके नेता मौज करते हैं जो बजट मिलता है उसे व सरकारी कर्मचारियों के वेतन में लगाते हैं जबकि उसे प्रदेश के विकास में लगाना चाहिए। सरकारी कर्मचारी अपना भुगतान पाने के लिए काम करे,ं ना कि कर्ज लेकर के भुगतान ले , वह यह देखें कि आखिर वह देश के लिये कर क्या रहें है उनके कार्यो का मूल्याकंन करने के बाद ही पगार देने के लिये राज्य सरकार से कहें।