सनातन धर्म के उपासक भारत में साध्वियों की दुर्दशा क्यों ?

क्या इस देश में महिला साध्वी जो भगवान की उपासना में तपस्या में लगी है उनको रहने का अधिकार नही है। क्या देश में पुरूषों का ही उर्चस्व होना चाहिये यह अजीब सा नही रहता। वह महिला जो एक घर से निकल कर दूसरे घर में जाती है और उस घर को संवारती है उसके लिये उस घर में कुछ नही होता। विघवा होने पर वृन्दावन भेज दिया जाता है जहां वह किसी आश्रम में भगवान श्रीकृष्ण के नाम पर पूरा जीवन गंम्भीर यातनाओं के साथ बिता देती है। यही इस देश में उसकी कीमत हैं। उसका बिकना , उसके साथ बलात्कार होना , उसका शोषण करना और सरकारी संरक्षण इन सब चीजों को देना ही इस देश की फिदरत है। हमने जितने दुराभाव उनके प्रति थे उसे निकालने का प्रयास किया लेकिन पूरे मन से नही किया। कुछ लोग उनके इस देश में रहने के खिलाफ है इसलिये बेच देते है। कुछ लोग उन्ळें बच्चा पैदा करने की मशीन समझने लगे है इसलिये जब विवाह करते तो ध्यान में रखते है कि ज्यादा बच्चे चाहिये। उसक बाद उसे छोडकर दूसरा करना है और अपने मंसूबे में लग जाना है।कुछ लोग सिर्फ मौज मस्ती मानते है। लिव इन में रहना चाहते है और नाजायज बच्चों की फौज देश में देखना चाहते है। यह तय नही कर पा रहें है कि कैसा भारत देश चाहिये।
देश में महिलायें भी भगवान की उपासना करके कुछ प्राप्त करना चाहती है। इसके लिये वह अखाडों के बाबाओं की टोली में शामिल होती है अपना सबकुछ छोडकर , लेकिन उनकी जगह भी कुछ कपटी महिलाओं ने ले ली। वह बाबाओं से रासलीला रचाकर अखाडों पर बाबा न होते हुए राज कर रही है। जिसके कारण सही महिला साध्वी खाक छान रही है। उनके पास जीवन यापन के लिये कुछ नही है साध्वी बनने के बाद उन्हें अपने गुरूओं के साथ संबंध बनाने पडते है। कुछ ऐसे भी है जो दीक्षित नही है लेकिन बाबा बने है। महंत बने है महामंडलेश्वर बने है। पैसे के आगे सबकुछ फीका पड गया है। महामंडलेश्वर की उपाधि देने वाले खुद भी शराब पीते है और जिसे दीक्षित कर रहें है उसे भी पिला रहें है। महामंडलेश्वर बनने के बाद कोकटेल पार्टी हो रही है। कौन है यह जिनकी पहचान नही हो सकती , सनातन धर्म और उनकी परम्पराओं का माखौल उडा रहें है। पैसे के बदले पद बेंच रहें है।

देश में कुछ 52 शक्तिपीठ है जो कि देवियों के है और वहां की देखरेख पुरूषों के हाथ में है जो कि गलत है उसे साध्वियों के हाथों में होना चाहिये।इस बात पर कोई बहस नही करना चाहता । लाखों की तादाद में साध्वी है जो मंदिर की सुरक्षा व देखरेख कर सकती है लेकिन अखाडों में पुरूषों को दायित्व देने का रिवाज है साध्वी को नही । कैसा देश है जहां लाखों साध्वी जो सिर्फ इसलिये आती है कि भगवान के चरणों में विलीन हो जायेगें किन्तु उनके लिये अखाडों ने जो तय कर रखा है वह आज भी भोजन पानी देने तक ही सीमित है।देश व प्रदेश की सरकारों को इस बारे में सोचना चाहिये वह नही सोचेंगे तो कौन सोचगें। देवियों के मंदिरों में रखी देवियों का वस्त्र उतारना अपराध की श्रेणी में आता है यह काम साध्वी का है उसे करने देना चाहिये एैसा प्रासंगिक नही लगता।हर नाजायज मुद््दे पर अपना पक्ष रखने वाली कोर्ट भी इस मामले पर कुछ नही बोलना चाहती आखिर क्यों ?क्या यह देश साध्वी का नही है।

धर्माचार्यों को चाहिये कि सभी मठीधीशों को बुलायें , चाहे वह किसी अखाडे के हो। उनके सामने साध्वियों का पक्ष रखे उनसे कहें कि शक्तिपीठों की जिम्मेदारी महिलाओं के अधीन हो न कि पुरूषों के । उन्हें बताना चाहिये कि भारत देश की महिलायें जहाज चला सकती है , जिले संभाल सकती है , राकेट बना सकती है, आसमान में संचालित कर सकती है तो मंदिर की जिम्मेदारी क्यों नही संभाल सकती । इसके लिये साफ नीयत और दबाब बनाने की जरूरत है। भगवान के दरबार में महिलाअेां को पुरूषों के बराबर सम्मान मिले।
फिलहाल केन्द्र सरकार ने महिलाओं केा काफी सुविधायें दे रखी है वह बात अलग है कि सरकारी अधिकारी उसे अमल में नही आने देते जिनको लाभ मिलना चाहिये उन्हें रिश्वत लेकर उन लोगों तक पहुंचा देते है जिनको उनकी जरूरत नही होती । लेकिन इस प्रकिया से साध्वी केा बाहर रखना चाहिये क्योंकि उनके जीवन का मालिक भगवान ही होता है और वहां भी यह पुरूष प्रधान समाज नही जाने देता उनके लिये इस देश में कुछ नही है वह कहीं लंगर चल रहा है तो लाइन में लगकर खाना प्रसाद समझकर खा रही है । दयनीय हालत में है उनको एक स्थान देना चाहिये जहां वह महिलाओं की टोली में दयनीय हालत में ही रह सके। कह सके कि यह महिलाओ का मंदिर है । मुझे पूरा विश्वास है कि जिस दिन शक्तिपीठों को महिला साध्वियों के हाथ दे दिया गया उस दिन वह पुरूषों के अधीन रहने वाले मंदिर से अच्छा व साफ सुथरा होगा। विश्व में एक अलग मिसाल पैदा करेगा।

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