‘भारत माता की जय’, ये शब्द आज से नहीं बल्कि भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान से कहा जाता रहा है। एक तरह से ‘भारत माता की जय’ सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाला नारा था। भारत भूमि को जीवन का पालन करने वाली माता के रूप में रूपायित कर उसकी मुक्ति के लिए की गई कोशिशों में महापुरुषों ने कई बार इस नारे का प्रयोग किया। भारत माता की वंदना करने वाली यह उक्ति हर उद्घोष के साथ स्वाधीनता संग्राम के सिपाहियों में नए उत्साह का संचार करती थी। जिस धरती पर हम रहते हैं उसकी पूजा करना, जय-जयकार करना क्या गलत है? इन शब्दों और भारत को अपनी मां के रूप में स्वीकार न करने से तो निस्संदेह यही प्रतीत होता है कि हम भारत में रहकर राष्ट्रवाद को पीछे छोड़ रहे हैं। हम उन महान योद्धाओं का उपहास उड़ा रहे हैं जिन्होंने भारत को अपनी माता समझकर देश के दुश्मनों का ज़ुल्म सहा और लड़ते-लड़ते अपने प्राणों की आहुति दी। हम उपहास उड़ा रहे हैं और मनोबल गिरा रहे हैं सरहद पर दिन-रात देश की रक्षा करने वाले उन ज़िंदा-दिल जवानों का जो भारतमाता की जय-जयकार कर सीने पर गोलियां खाने को तैयार रहते हैं। लोकतंत्र है, अपनी बात रखने को सबको हक़ है, लेकिन बात ऐसी भी न रखी जाए जिससे राष्ट्रवाद पर असर पड़े, इसका ध्यान रखना चाहिए…
भारत माता की जय यह केवल एक नारा नही यह तो एक् मंत्र है ,इसके उच्चारण से हर हिन्दुस्तानी का शर्रीर रोमांचित होता है, इस मंत्र के उदघोष क़े लिए अनेकों भारतीयों ने अपने प्राणों को नुचावर किया है,यह मंत्र हर भारतीय कि जीवन की प्रेरणा है ,यह अपने आप मे इस राष्ट्र का जीवन मुल्य हैं ,इस मन्त्र को नकारने की स्वतंत्रता देना इसका अर्थ राष्ट्रद्रोह करने के लिए खूली आज़ादी देंने जैसा है, और इतिहास साक्षी है ऐसी आज़ादी न् कभी किसीको मिली है न् भविष्य मे किसीको मिलेगी….जय माँ भारती.