कश्मीर में किस तरह का कानून है कि देश को तोड़ने वालों को सजा के बजाय इनाम दिया जाता रहा और देश की जनता इसका कष्ट भोगती रही। क्या दूसरे महजब के अनुपालन में बाधा उत्पन्न करना इस्लाम है। अगर है तो उनके मजहब के लोगों को रोका क्यों नही जा सकता, हिन्दू किस बात का इंतजार कर रहे है।उन्हें इस मसले पर अपने प्रतिनिधियों से बात करनी चाहिये और अब इस पर टालमटोल न करते हुए स्पष्ट जबाब मांगना चाहिये । ऐसे तमाम सवाल है जो इस समय कश्मीर में देश के सभी भागों से अमरनाथ यात्रा के लिये आये यात्रियों के मन में गूंज रहा है। मगर यह राजनीति है जो किस करवट बैठती है कोई नही जानता । हर बार वह उन लोगों की मद्द करती है जो कि देश के दुश्मन है, भूले से भी उसे कभी अपने देश वासियों की याद नही आती। जब बाढ आती है तो सेना की मद्द चाहिये और जब मद्द मिल गयी और जान बच गयी तो सेना के उपर पत्थर बरसाये जा रहे है, यह कैसी लीला है, इस पर गंभीरता से विचार करना ही होगा। अलगाववादी नेता खुश हो रहे है और हो भी क्यों न, उनके मंसूबे जो पूरे हो रहें है। आज अमरनाथ यात्रा पर गये यात्रियों के साथ जो कुछ हो रहा है वह किसी से छिपा नही है लेकिन सभी मौन है कोई कुछ बोल नही रहा है। क्या वाकही हालात इतने खराब है या फिर उनके पास वह हथियार है जिनका हम मुकाबला नही कर सकते।
गौर करने की बात यह है कि यह सब घाटी में ही हो रहा है और वहां कश्मीरी पंडितो को पलायन कराकर एक तरह से आधिपत्य सा कायम कर लिया गया है स्थानीय सरकार का भी इनकेा समर्थन प्राप्त है, इसलिये इनके मंसूबे इतने बढ गये। न तो यह कश्मीरी पंडितो को वहां वोट देने देते है और न ही रहने , अगर यह पंडित वहां वोट देने की सुविधा प्राप्त करने लगे तो स्थित बदल जायेगी। घाटी से कश्मीरी ब्राहमण भी चुनकर आयेगा और समान मात्रा में विधायक भी असेम्बली में आयेगें। एकतरफा सीटे लेकर जो अलगाववादी अब तक शासन चला रहें है , वहां वह कमजोर होगें और सरकार को ब्लैकमेल नही कर पायेगें, इसके अलावा जो अत्याचार वहां की आवाम पर हो रहा है वह इस तरह खुलेआम नही हो पायेगा।आखिर कश्मीर भारत का एक अभिन्न अंग है जिससे इंकार नही किया जा सकता जबकि देश के भीतर इस तरह से आधिपत्य करना गुनाह की श्रेणी में आता है ।
वैसे भी अब यह जरूरी हो गया है कि अमरनाथ यात्रियों की दुर्दशा के बाद कश्मीर घाटी के हालात को काबू में लाने के लिये सेना के हवाले कर दिया जाना चाहिये क्योंकि जिस तरह से इन अलगाव वादियों ने वहां से कश्मीरी पंडितों को मार कर भगाया है , वह पुलिस के काबू में आने वाले लोग नही है।पहले भी पुलिस ऐसे लोगों का समर्थन करती रही है और माहौल बिगाडने में सक्रिय भूमिका निभाती रही है इसलिये वहां सेना ही काबू कर सकती है। अलगाव वादी नेताओं की जहां तक बात है तो इन्हें सुविधा देने के बजाय जेल में नजरबंद किया जाय या फिर कालकोठरी में उसी तरह डाल दिया जाय जैसे ये गुलामी के समय में हिन्दुओं के साथ किया करते थे। उन नेताओं के खिलाफ भी कारवाई होनी चाहिये जो इस मुद्दे पर संसद को गुमराह कर कार्य में बाधा डाल रहें है।देश की तरक्की को बाधित कर रहें है।उन पर भी देशद्रोह का मुकदमा दर्ज होना चाहिये।
अब रही बात अमरनाथ यात्रियों की , तो क्या बंदूकों के साये व संरक्षण में भगवान श्ंाकर के दर्शन होगें , इस बात पर प्रदेश व केन्द्र सरकार को अपनी एक नीति देश की जनता के सामने रखना चाहिये और उसे क्रियान्वत भी करना चाहिये , ताकि हिन्दूओं को यह न लगे कि वह अपने ही देश में बने एक नये देश में जा रहें है जहां उनके राह में हर तरह के रोडे हैं इसलिए देशद्रोही ताकतों को कुचलने के लिए सरकार दृढ़संकल्पित है आवश्यकता है कि उसमें देशभक्त जनता संपूर्ण मनोयोग से उसका साथ दे।
सरकार को देश भक्त नही वोट बेंक वाले चाहिए! इसलिए सरकारे कार्यवाही नही कना चाहती! जिस दिन सरकार वोट बेंक का लालच छोड़कर देश हित की सोचते हुए कार्यवाही करेगी उस दिन सरकार को देश भक्तो का रेला मिलेगा! जो अपने प्राण हथेली पर लेकर आए होगे! एक बार ईमानदार कोशिश करके तो देखो एक बार वोट बेंक का लालच छोड़कर तो देखो! जय हिंद!