वकालत यह सेवा कार्य है व्यापार नहीं

वकील एक सामाजिक अभियंता है।

सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद दुःख भागभवेत।।

अधिवक्ता के व्यवसाय का यह भी अर्थ है कि दूसरे व्यक्तियों को सेवायें प्रदान करना। इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि अधिवक्ता प्रत्येक व्यक्ति को विधिक सेवायें प्रदान करते हुए पारिश्रमिक लेता है लेकिन फिर भी यह व्यवसाय एक सेवाभावी प्रवृत्ति से प्रेरित होकर किया जानेवाला व्यवसाय होने के कारण इसे हम व्यापार अथवा वाणिज्य की श्रेणी में नहीं रख सकते और न ही रखा जा सकता है, क्योंकि मानव के अधिकार की रक्षा करने में एक मूलभूत मानवता की भावना छिपी होती है।
महात्मा गांधी स्वयं वकील थे जिन्होंने आज से लगभग 80 वर्ष पूर्व कहा था, ’’ प्रथम महत्वपूर्ण बात अपने मस्तिष्क में रखने की है यदि आप विधिक व्यवसाय को ईश्वरीय व्यवसाय या ईश्वर द्वारा प्रदत्त कृत्य की श्रेणी में रखकर करते हैं तब यह आपका व्यवसाय व किया जाने वाला कार्य कभी भी आपको स्वार्थ की भावना से प्रेरित नहीं करेगा व स्वार्थी नहीं बनायेगा बल्कि आपके द्वारा किया जाने वाला उक्त कार्य राष्ट्र की सेवा के प्रति किए जाने वाले कार्य की श्रेणी में माना जायेगा।

परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः
परोपकाराय दुहन्ति गावः
परोपकाराय वयं अधिवक्तारः।।

अधिवक्ता वर्ग को ड्रेस पहनकर न्यायालय में उपस्थित होने का अर्थ यह है कि मुवक्किल का हित न्यायालय के समक्ष सेवाभावी रूप से प्रकट कर रहा है।
जिस प्रकार से एक चिकित्सक यदि पर्याप्त रूप से दक्ष न हो तो वह अपने मरीज को मौत की नींद सुला सकता है। चिकित्सक मरीज को तभी बचा सकता है जब कि वह अपने व्यवसाय में पूर्ण रूप से दक्ष हो। इसी प्रकार से प्रत्येक अधिवक्ता का यह दायित्व है कि वह अपने व्यावसायिक ज्ञान को इतना पर्याप्त रूप से हासिल करे।

ज्योतिषं व्यवहारंच प्रायश्चितं चिकित्सकतं
अजानन यो नरो ब्रूयात् अपराधं किं अतःपरं।।

पाराशर स्मृति नामक हमारे भारतीय प्राचीन पुस्तक में लिखा हुआ है और यह बताया गया है कि यह एक बहुत बड़ा अपराध होगा कि बगैर कोई दक्षता हासिल किए या आवश्यक ज्ञान प्राप्त किए कोई व्यक्ति ज्योतिष विज्ञान, अधिवक्ता, चिकित्सक का दायित्व निभाये।
मुकद्दमा लंबा न खिंचे और लोगों को शीघ्र न्याय मिले। एक वकील के रूप में मैं अपराधियों , बलात्कारियों तथा हत्यारों का कभी साथ नहीं दूंगा तथा पीड़ित व्यक्तियों की ओर से लड़कर उन्हें उचित न्याय दिलवाउंगा।
ग्रामीण गरीब प्रायः एक दूसरे पर व्यर्थ का मुकद्दमा करते हैं। ऐसे लोगों का मैं आपस में सुलह करने की सलाह दूंगा। बहुत से वकील इन भोले भाले व्यक्तियों के केस बहुत ही लंबा खींचतेे हैं तथा अपनी जेब भरते हैं। इन व्यर्थ के मुकद्दमों के कारण न्याय मिलने में देरी होती है। एक वकील के पेशे को चुनने के पीछे मेरा उद्देश्य यह भी है कि लोग न्याय को बिकाऊ ना समझे।

अधिवक्ता एवं मानवता

येके सत्पुरूषाः परार्थघटकाः स्वार्थं परित्यज्यये।
सामान्यस्तु परार्थमुद्यंमभृतः स्वार्थाविरोधेन ये।
ते ै मी मानुषराक्षसाः परहितं स्वार्थाय विघ्नान्ति ये।
ये विघ्नंति निरर्थकं परहितं ते के न जानीमहे।।

जो व्यक्ति निःस्वार्थ भावना से दूसरों की सेवा करते हैं , वे तो इस पृथ्वी पर महान होकर असाधारण व्यक्तित्व वाले होते हैं। और जो व्यक्ति दूसरों की सेवा अपने स्वार्थ हित को निश्चय करके करते हैं, वे साधारण व्यक्तित्व वाले होते हैं और जो व्यक्ति स्वार्थवश दूसरों का शोषण करते हैं या उन्हें क्षति पहंुचाते हैं , वह मानव शरीर में राक्षस का रूप होते हैं। यहां यह बताना उचित है कि कितने व्यक्ति ऐसे होते हैं जो कि महान व असाधारण व्यक्ति वाले हैं, कितने व्यक्ति ऐसे हैं जो कि मानव में राक्षस प्रवृत्ति वाले हैं। सोचना आपका काम है और मूल्यांकन करना भी आपका स्वयं का काम है।

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