आवारा पशुओं पर ध्यान दे उ.प्र. सरकार

उत्तर प्रदेश के किसानों की एक बहुत बडी समस्या है मवेशी , उनका वह क्या करें।जब से योगी सरकार ने गायों की सुरक्षा के लिये कडाई की है और उनके कटने पर प्रतिबंध लगाया है तब से गोपालकों की चांदी हो गयी है। वह आराम से गायों को चारा खाने के लिये छोड देते है और जब वह बच्चा देने वाली होती है तो बांध लेते है। यह काम पूरे साल चलता है लोग जानते है कि किसकी गाय है किसका बैल है लेकिन कुछ बोल नही सकते । जिन लोगों के घरों मंे भूसा खिलाने के लिये नही है वह भी तीन चार गाय जो बच्चा देने वाली होती है उसे बांध ले रहें है। गायों को खरीदने का व्यापार ही बंद हो गया है नतीजा खेतों से अपना पेट भर रही है और लावारिस बनकर घूम रही है। हर जगह मार खा रही है और यातनामय जीवन योगी राज में जी रही है।

अब बात करते है बछडों की तो सबसे बुरी हालत में वह है। कुछ महीनों का होेते ही उसे छोड दिया जाता है क्योंकि वह किसी काम नही आता और छोटी उम्र में ही वह खाने के लिये जिधर जाता है उसे मार पडती है जिसके चलते वह अपना बचाव करते करते कब मरकहा हो जाता है उसे पता ही नही चलता। पहले आदमी इसे बेंच देते थे और कसाई लोग काटकर अपनी आमदनी का जरिया बना लेते थे लेकिन अब जो स्थित है वह और भी भयावह है। यह लावारिस है और सबसे दुखद बात यह है कि छोटे छोटे बछडे ही तडप तडप कर खाने के अभाव में मर रहें है।सरकार को इनके लिये कुछ करना चाहिये उन लोगों के खिलाफ कारवाई करनी चाहिये जो गोवंश के साथ इस तरह का व्यवहार कर रहें है।असमय ही उसे मार रहें है।इसके मुख्य कारणों पर नजर डाली जाय तो इसका सबसे कारण टैक्टर है जो कि उनकी जगह ले रहा है और उनका उपयोग खत्म कर रहा है । पहले यही बैल काफी काम करते थे और घर की शान होते थे लेकिन इंसानों के जानवर बनते ही सरकारों ने इसे लजीज पकवान बना दिया। आज पूरा देश इससे काम नही ले रहा है बल्कि खाने के लिये प्रयोग में ले रहा है।अगर इन गोवंश को रोकना है तो टैक्टरों को बंद करना होगा, वैसे भी वह देश के लिये इतना उपयोगी नही है कि गोवंशों की जगह ले सके। वैसे देखा जाय तो कुछ लोगो ने इसके महत्व को समझा और उसे आयुर्वेद में स्थापित किया आज पंतजलि का गोमूत्र भी लोग अपने घरों में ले आ रहें है। उनके गोबर से बनी घूप बत्ती का प्रयोग कर रहें है । उनके घी की मांग बढी है और तो और गोदान का चलन भी बढ रहा है लेकिन न जाने गांव के गंवार यह बात कब समझेगें। हलाकि शहर में भी गंवारों की कमी नही है वह दूध निकालने के बाद उन्हें गलियों में खाना खाने के लिये छोड देते है।सरकार की तरफ से कांजी हाउस बनाया गया हेै लेकिन जब फ्री की पगार मिल रही है तो गायों को पकडने की जरूरत क्या है।सरकार को चाहिये कि गायों का रजिस्टेशन करें और किस आदमी के पास कितनी गाय है उसके हिसाब से मूत्र व गोबर ले और अपना उत्पाद खुद बनाये इसके लिये जिले स्तर पर कारखाना लगाया जाय और सरकार खुद बेंचे । किन्तु कर्मचारी न रखे बल्कि ठीका दे ताकि काम हो।उसकी निगरानी में गोधन से बनने वाले उत्पाद बाजार में आये और सस्ते दामों में उसे सरकार बेंचे। सब्सिडी दे और प्रचार करें ताकि लोग आर्कषित हो । गोवंश का जीवन सुधरे, उसे मौत मिलती यह अच्छा था बजाय आज हर मोड पर मरवाने के । इसके अलावा उन लोगों पर कारवाई करें जिनके घरों मंे गायें है और उन्होने उसे आवारा पशु बनने के लिये छोड रखा है।
फिलहाल जो हालात आज उप्र के है वहां गोवंश बहुत ही भयावह स्थित में है जिसे अनदेखा किया जा रहा है बार बार कहा जा रहा है कि गोशाला बनायी जाय लेकिन प्रधान स्थानीय अधिकारियों से मिलकर उसके लिये आये पैसे को खा जा रहें है।और गोंवश का नुकसान सारी मद्द मिलने के बाद भी हो रहा है।

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