वेदों में गाय का उल्लेख

  • धेनु सदनंरयीणाम – (अथर्ववेद 11-3-34) अर्थात गाय संपत्तियों का भंडार है।
  • यू यं गावो भेदयथा कृशंचिदश्रीरं चित कृणुथा सुप्रतीकम भद्र , गृहं कृणुथ भद्रमवाचो वृहद वो वय उच्चते सुभासु।(ऋग्वेद 6-28-6) अर्थात तुम दुर्बल को भी बलवान बना देती हो और कांति रहित मुख को भी सुंदर बना देती हो। तुम घर को कल्याणमय और सुखमय बना देती हो। है भद्रवाणी वाली गौवों सभाओं में तुम्हारे अमृतमय दुग्ध की बड़ी महिमा गायी जाती है।
  • माता रुप्राणं दुहिता वसूना, स्वसादित्यनाम मृतस्य नाभिः प्र नु बोचं चिकितुषे मा जनाय गामनागाभदिति वघिष्ट (ऋग्वेद 8-101-15) अर्थात गाय रुद्रों की माता है, वसुओं की पुत्री है और आदित्यों की बहन है। वह घी, दूध आदि अमृत की केंद्र है। विचारशील मनुष्यों को कहा गया है कि जो विशेष उपकारी और वध न करने योग्य गाय है, उसका वध मत करो।
  • गावो विश्वस्य मातरः – गाय विश्व की समस्त मानवजाति की मां है।
  • विश्वरूपा धेनुः कामदुधा मेsस्तु। – मनुष्य की समस्त कामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ होने के कारण इसे कामधेनु कहा जाता है।
  • समुद्रमंथन से प्राप्त 14 रत्नों में एक रत्न गाय है।
  • हिन्दू धर्म में मानते हैं की 33 कोटि देवी देवताओं का वास होता है। इसका निहितार्थ यह है कि कोटि का अर्थ प्रकार होता है। 33 प्रकार के देवी – देवता वास करते हैं यानी 12-आदित्य,  8- वसु, 11-रुद्र, 2- अश्वनीकुमार।

 गुरु वशिष्ठ ने गाय कुल का विस्तार किया और गायकी नई जातियां ढूंढ के निकाली उस समय 8 से 10 प्रकार की गाय उपलब्ध थी जिनकी नस्ल के नाम थे कामधेनु, कपिला, देवनी, नंदिनी, भौमा आदि ।

  • आ गावो अगमन्नुत भद्रकम्रन गोष्मेरणयंत्वसमे।

प्रजावतीः पुरुरूपा इहस्युरिन्द्राय  पूर्वीरुष्सोदुहानः।।

यूयं गावो मके दयथा कृशं चिदश्रीरं चित्कृणुथा सुप्रतीकम।

भद्र गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहद्धो वय उच्चते सभासु।।

” गो- माताओं ! तुम अपने दूध और घी से दुर्बलों को बलिष्ठ बनाती हो और रोगियों को स्वस्थ। अपनी पवित्र वाणी से तुम हमारे घरों को शुद्ध करती हो। सभाओं में तुम्हारा गुणगान होता है।(अथर्ववेद-4-29-11और 6)

  • सा नो मन्द्रेषमूर्ज़म दुहाना।

धेनुर्वा अस्मानुष सुष्ट्यूतैतु।।

वह है कामधेनु – हमारी आवश्यकताओं को पूर्ण करने वाली दिव्य गाय। अपने थनों से वह धर्म , अर्थ, काम और मोक्ष की वृद्धि करती है। (अथर्ववेद 10-10-34)

  • गावो बन्धुरमनुष्यानां मनुष्याबाँधवा गवाम।

गौ:  यस्मिन गृहेनास्ति तद बंधुरहितम् गृहम।।

गायों में लक्ष्मी का निवास है। वे पापों से मुक्त हैं। मनुष्य और गाय का संबंध बान्धव का है। गौ विहीन घर प्रियजन रहित के समान है। (पद्मपुराण)

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