भूजल से हिमालयी स्लिप और जलवायु को किया प्रभावित

अब यह आवश्यक हो गया है कि ग्लेशियर के संरक्षण के लिये एक योजना बनायी जाय और पर्यावरण को वहां के अनूकूल बनाये जाने का प्रयास किया जाय जिससे कि आने वाले समय के लिये जल को संरक्षित कर रखा जा सके। आज के दौर में देखें तो इन पहाडों पर पर्यावरण को खत्म करके वहां शहर बनाये जाने का काम किया जा रहा है जैसे केदारनाथ , बद्रीनाथ , गंगोत्री व जमुनोत्री के अलावा तमाम ऐसे शहर जो धाार्मिक आस्था वाले पहाडी जगह है वहां पहाड को खत्म करके होटल व लाज बनाने पर जोर दिया जा रहा है । ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग आ सके किन्तु यह स्वप्न बहुत ही खराब है। लोग आते है तो अपने साथ गंदगी लेकर आते है और यहीं छोडकर चले जाते है जिससे ग्लेशियर प्रभावित होता है।ओरयही कारण है हमारे देश से ग्लेशियर खत्म होते जा रहें है जिसके कारण आने वाले समय में काफी दिक्कत पानी को लेकर हो सकती है।

देखा जाय तो हिमालय की तलहटी और भारत-गंगा का मैदानी भाग डूब रहा है, क्योंकि इसके समीपवर्ती क्षेत्र भूस्खलन या महाद्वीपीय बहाव से जुड़ी गतिविधि के कारण बढ़ रहे हैं। जर्नल ऑफ जियोफिजिकल रिसर्च में प्रकाशित नए अध्ययन से पता चलता है कि सामान्य कारणों के अलावा, भूजल में मौसमी बदलाव के साथ उत्थान पाया जाता है। पानी एक चिकनाई एजेंट के रूप में कार्य करता है, और इसलिए जब शुष्क मौसम में पानी होता है, तो इस क्षेत्र में फिसलन की दर कम हो जाती है।अब तक किसी ने भी जल-विज्ञान संबंधी दृष्टिकोण से बढ़ते हिमालय को नहीं देखा ,अब इस अभिनव प्रिज्म के माध्यम से इस गतिविधि को देखा। पानी के भंडारण और सतह भार में भिन्नताएं पाई जाती हैं, जिसके कारण मौजूदा वैश्विक मॉडलों के इस्तेमाल से इन्हें निर्धारित करने के लिए काफी मुश्किल हैं।

भू गर्भ के जानकारों का मानना है कि हिमालय में, ग्लेशियरों से मौसमी पानी के साथ-साथ मानसून की वर्षा, क्रस्ट की विकृति और इससे जुड़ी भूकंपीयता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भू-जल में कमी की दर भूजल की खपत के साथ जुड़ी हुई है। शोधकर्ताओं ने ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) और ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट (ग्रेस) डेटा का एक साथ उपयोग किया है, जिससे उनके लिए हाइड्रोलॉजिकल द्रव्यमान की विविधताओं को निर्धारित करना संभव हो गया है। 2002 में अमेरिका द्वारा लॉन्च किए गए ग्रेस के उपग्रह, महाद्वीपों पर पानी और बर्फ के भंडार में बदलाव की निगरानी करते हैं। इससे आईआईजी टीम के लिए स्थलीय जल-विज्ञान का अध्ययन करना संभव हो पाया। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त संस्थान, भारतीय भू-चुम्बकत्व संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ जियोमैग्नेटिज्म) (आईआईजी) के शोधकर्ताओं ने भूजल में मौसमी बदलावों के आधार पर शक्तिशाली हिमालय को घटते हुए पाया। चूंकि हिमालय भारतीय उपमहाद्वीप में जलवायु को प्रभावित करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसलिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा वित्त पोषित अध्ययन से यह समझने में मदद मिलेगी कि जल-विज्ञान किस प्रकार जलवायु को प्रभावित करता है। इसलिये समय आ गया है हर भारत वासी अपने इस जीवन को सार्थक करते हुए अपने जीवन काल में हर साल एक पेड़ जरूर लगाये ताकि पर्यावरण को संरक्षित किया जा सके और अपने आप को होने वाली बीमारियों से बचाया जा सके। हर पेड़ कुछ न कुछ हमें देकर जाता है इसलिये यह नही सोचना चाहिये कि हर पेड़ हमें कुछ नही दे रहा है , परमात्मा जानता है कि उसने उस पेड़ को किस लिये बनाया है और जिस तरह आप अपना काम करते है उसी तरह व अपना काम कर रहा है जो कि प्रकृति को संरक्षित करने में सहायक है।

यकीन मानिये अगर यह पेड नही रहे तो आने वाले समय में जैसे आज करोना आया है , पहले मलेरिया , प्लेेग, फलू आदि आते रहें है उसी तरह से महामारी आती रहेगी और देश पीछे की ओर जाता चला जायेगे। जो अमीर है दवा का खर्च बहन कर सकते है वह तो रहेगें लेकिन जो गरीब है जिनसे देश चलता है वह खत्म हो जायेगा । जो किसी देश के लिये अच्छा नही होता।

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