देश की राजनीति में उप्र का महत्व


देश का बंटवारा, उसके बाद बंटवारे की राजनीति, विखंडित होता समाज, धर्म संप्रदाय की भेंट चढ़ती लोकनीति, घटता रोजगार, बिगड़ती खेती, दलित राजनीति का उफान और मंदिर मस्जिद के सारे प्रश्न । इसी प्रदेश में पैदा हुए इतिहास जब भी निरपेक्ष भाव से राजनीति के भूगोल को पढेगा तो उसे उत्तर प्रदेश में बुनियादी बदलाव की असंख्य प्रयोगशाला मिलेंगे इसीलिए उत्तर प्रदेश को विराट चुंबक प्रदेश भी कहते हैं जिसके स्पर्श के बिना भारतीय राजनीति फलित नहीं होती ।इस राज्य में देश की राजनीति को विद आयाम दिए आजादी के 75 साल बाद भी उत्तर प्रदेश ही देश की राजनीति की धुरी है यह बात अलग है कि उत्तर प्रदेश लगातार प्रश्न प्रदेश बनता जा रहा है बीते 75 सालों में उत्तर प्रदेश में इस देश की राजनीति को सजाया संवारा माझा बांटा और उसे नई नई दिशाएं दी।

देश की आजादी के आंदोलन का नेतृत्व लाहौर कांग्रेस के पूर्ण स्वराज के नारे के साथ जब उत्तर प्रदेश के हाथ आया तो फिर कभी वापस नहीं गया । 7 दशक के भारतीय राजनीति की सभी धाराओं की गंगोत्री किसी राज्य में है चाहे वह जात की गणित हो या बहुसंख्यक ताकत की, समाजवादी उठाओ हो या फिर राजनीतिक परिवारों का प्रभुत्व भारतीय राजनीति की सारी करवट उत्तर प्रदेश की छाया में ही है उत्तर प्रदेश के वर्तमान को समझने के लिए उसके अतीत से वाकिफ होना जरूरी है। देशभर में अच्छा बुरा जो कुछ हुआ उसकी जड़े आपको उत्तर प्रदेश में मिलेंगे। इसी राज्य ने आजादी की लड़ाई लड़ी और मुल्क को आजादी दिलाई लेकिन मूल के बंटवारे की मांग भी यहीं से उठी ।मंडल के बाद सामाजिक विकराल के बीच यही फोटो और राजनीति की सभी प्रयोगशाला मथुरा, काशी, अयोध्या, यही बनी ।

उत्तर प्रदेश से ही इस्लाम की दुनिया भर में 2 मशहूर धाराएं जन्मी बरेली की जमीन पर और पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले तालिबानियों की तमीज नहीं है यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि उत्तर प्रदेश की जमीन की उपजाऊ तहसील जितनी है उतनी ही है बरेली और धर्म के लिए हुआ उतना सियासत के लिए अयोध्या मथुरा काशी । बरेली के सामाजिक और राजनीतिक दूरी होने के बावजूद उत्तर प्रदेश की राज्य की सूची से बाहर नहीं आ पाया ।खुद को बदलने का साहस नहीं कर पाया इसलिए कहना पड़ता है कि भाषा में इतना कायर हो कि उत्तर प्रदेश विसंगतियां यह रही की बीमारी का हालत में भी देश का प्रधानमंत्री दे दिए जरा सोचिए जब राज बीमार हो तो देश को नो प्रधानमंत्री दे सकता है तो स्वस्थ रहता तो क्या होता तमाम राजनीतिक दल छाती पर चढ़कर सत्ता में तो आए लेकिन खुद को नहीं संभाल सके नतीजा उत्तर प्रदेश विकास की दौड़ से नीचे चला गया ।वह खुद तो आगे र्बढ गये लेकिन उत्तर प्रदेश के लिये कांटे बोते गये। जिसे अब योगी उखाड रहें हैं।
जाति संप्रदाय की राजनीति के चलते जाति संप्रदाय उत्तर प्रदेश की राजनीति सरकारी काम पर नहीं भावनाओं पर बनी बनती बिगड़ती सरकारों की उम्र 1 साल ही रही । जल्दी-जल्दी सरकारें एक-दूसरे की और विकास की सत्ता की भेंट चढ गयी। नयी सरकार आई तो पूर्ववर्ती सरकार की योजनाएं बंद कर दी, पहले वाली लौटी तो दूसरे वाले की बंद ,इस घटिया खेल में फंस उत्तर प्रदेश का औद्योगिकरण फोकस भी बिगड़ गया। ढांचागत सुविधाओं का ध्यान नहीं रहा, उत्तर प्रदेश का किसान देश में गन्ना सबसे ज्यादा पैदा करता है, पर गन्ना किसानों की सहूलियत है महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा या गन्ना किसान का भाग्य मिल मालिकों की मुट्ठी में कैद हो गया। केरल में हर 5 साल में सरकार बदल जाती पर वहां सरकार बदलने से विकास का झंडा नहीं बनता इसलिए किरण विकास की रफ्तार में हमेशा अव्वल रहता हैलेकिन यहां के लोगों द्वारा विकास की जगह जातिवाद व दलित वाद ने ले लिया जिससे प्रदेश की हालत और बिगड गयी।

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