आईएस की धमक भारतीय उपमहाद्वीप तक

isisबांग्लादेश की राजधानी ढाका के होली आर्टिसन बेकरी रेस्तरां में शुक्रवार, दिनांक 1 जुलाई, 2016 को आईएस आतंकियों ने जो क्रूर कृत्य किया है वह आईएस के सन्दर्भ में आश्चर्यजनक नहीं माना जा सकता। रमजान का महीना इस्लाम में सबसे पवित्र महीना माना जाता है और इस्लाम इस महीने में हिंसा की किसी भी रूप में सहमति नहीं प्रदान करता है। धर्म के नाम पर आतंक का जो वातावरण ये आतंकवादी तैयार कर रहे हैं वह मानवता के किसी भी अंग के लिए सहानुभूति का विषय नहीं हो सकता। बांग्लादेश में आईएस की यह करतूत मात्र एक दिन की योजना का प्रतिफल नहीं हो सकती। इसकी पटकथा पहले से तैयारी की जा रही थी जब वहाँ अल्पसंख्यकों की हत्याएँ होनी प्रारम्भ हो गयी थीं। विश्व के अनेक विचारकों और राजनेताओं द्वारा बार-बार कहा जा रहा था कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता किन्तु विश्व में घटित अनेक आतंकी घटनाओं को देखकर भी कुछ आतंक सहिष्णु लोग आँखें बन्द किए मानवीय अधिकारों के नाम पर उनका समर्थन करते रहे हैं। उस स्थिति में आज भी कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। स्वयं हमारे देश में भी कुछ लोग ऐसे हैं जो मानवीयता के नाम पर आतंकवादियों को प्रश्रय देने का उपक्रम कर रहे हैं। बांग्लादेश में हुए हमले को इस्लाम के किसी भी कट्टर समर्थक द्वारा इस आधार पर कभी उचित नहीं ठहराया जा सकता कि उसमें मरने वाले इस्लाम के अनुयायी नहीं थे। क्योंकि सीरिया, ईराक और तुर्की में मारे जाने वाले अधिकांश लोग इस्लाम धर्म के अनुयायी हैं लेकिन इसके बावजूद उनकी हत्याएँ हो रही हैं। आतंक का धर्म से कभी कोई सम्बन्ध हो ही नहीं सकता। आज यदि बांग्लादेश तक आईएस की पहुँच बन चुकी है तो भारत इससे अछूता नहीं रह सकता। आज नहीं तो कल भारत को भी यह दंश झेलने के लिए तैयार रहना होगा। और इस दंश का शिकार मुसलमान नहीं होंगे, इसकी गारंटी देना किसी के भी वश की बात नहीं। आतंकवादियों को हत्या के लिए केवल मानव शरीर चाहिए। उन्हें इससे कोई सरोकार नहीं कि मरने वाले इस्लाम परस्त है अथवा किसी अन्य धर्म का अनुयायी है।
दुख का विषय है कि हमारे देश में कुछ लोग ऐसे आतंकवादियों का मनोबल बढ़ाने में सहायक हो रहे हैं। अपनी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा के निहित स्वार्थ में फंसकर ऐसे लोग देश को अज्ञात अन्धकार की ओर ले जाने की ओर तत्पर हैं। उन्हें यह ज्ञात ही नहीं कि वे जिस आग से खेलने का प्रयत्न कर रहे हैं उस आग में उन्हें भी अपनी आहुति देनी पड़ सकती है। आतंक को धर्म के नाम से जोड़कर जिस प्रकार दानवीय कृत्य किये जा रहे हैं उसका शिकार स्वतः उन्हें भी होना पड़ सकता है। आईएस इस्लाम के नाम पर विश्व में अपनी सत्ता स्थापित करने का जो स्वप्न देख रहा है उसमें सफलता मिलनी तो असम्भव है किन्तु सामान्य जन-जीवन अस्त-व्यस्त करने और आपसी वैमनस्य में वृद्धि करने का अवसर उन्हें अवश्य मिल सकता है।
अभी हाल ही में हैदराबाद से 5 संदिग्ध आईएस आतंकियों की गिरफ्तारी और इससे पूर्व कुछ भारतीय युवकों द्वारा आईएस में सम्मिलित होने के लिए सीरिया पहुँचना इस तथ्य का सूचक है कि आईएस भारत में भी अपनी गतिविधियों को बढ़ाने के लिए सक्रिय है। बांग्लादेश में हुए हमले के पश्चात भारत में कुछ उपद्रव की आशंका बेमानी नहीं है। अभी विगत में भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों में जो देशविरोधी माहौल तैयार किया गया ऐसे लोग आईएस का कभी विरोध नहीं कर सकते। दूसरे शब्दों में, ऐसे लोग आईएस के लिए पृष्ठभूमि तैयार करने में सहायक ही होंगे। देशहित की बात करने पर सर्टिफिकेट जारी करने का आरोप लगाया जाना कहीं न कहीं आतंक के वृक्ष में पानी देने का कार्य करता है। अतः मुझे अपने देश के इन राजनेताओं से करबद्ध निवेदन करने में कोई संकोच नहीं है कि वे कृपया देश को सुरक्षित बनाने में सरकार की सहायता करें और कुछ देर के लिए राजनीतिक रोटियां सेंकने के स्थान पर देशहित के विभिन्न पहलुओं पर गम्भीरतापूर्वक विचार करें। जिस आग में सीरिया जल रहा है उसे भारत तक आने से रोकने के प्रयास में सहयोग करें। इतिहास साक्षी है कि जिन देशों ने चर्च को सत्ता से अलग किया आज वे विश्व के विकसित देश हैं। उन्होंने अपने यहाँ इसी धरती को स्वर्ग बनाकर दिखाया है। भारत भी अब उसी राह पर अग्रसर है। आज देश को ऐसा प्रधानमन्त्री मिला है जो विश्व में भारत को उसके विन्यास के आधार पर शीर्ष पर स्थापित कर चुका है। ऐसे में हमारे बुद्धिजीवी राजनेताओं का भी यह कर्तव्य है कि वे देश को विकास पथ पर ले जाने में अपनी भूमिका का उचित निर्वहन करें और देश को विदेशी आपदाओं के कहर से बचाने में अपनी पूरी क्षमता के साथ सहिष्णु और उदार होकर अपना समर्थन दें।

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