सिविल अपराध के जनकों के लिये दंडात्मक कानून हो

देश के प्रति अगर वाकही काम करना है तो नगरपालिका , विकास प्राधिकरण व तहसीलकर्मियों के लिये कठोर कानून बनाने का प्रावधान करना होगा। यह इसलिये जरूरी है देश की जनता सिर्फ इन्ही तीन विभागों से पीडित है। अगर यह अपना काम सही से करने लगे तो देश के न्यायालयों में चल रहे 90 प्रतिशत मामले खत्म हो जाय और पुलिस व न्यायपालिका का काम भी हल्का हो जाय। अब बात करते है इनके कारगुजारियों पर ?

नगर पालिका की बात करें तो यहां पर कर लेने का प्रावधान है।वह व्यक्ति जो जमीन रखता हो, मकान बना हो और नगर पालिका की सुविधायें जैसे सडक, पानी व सीवर की सुविधा ले रखा है वह उससे कर वसूलती है। लेकिन आजकल वहां कुछ और ही होने लगा है। वसीयत में घांधली तो आम बात है पिता की जगह पुत्र का नाम तभी चढेगा जब वह कब्जे में हो । अगर किसी और ने कब्जा कर लिया तो वह उसका नाम नही चढायेगा। यह बात दीगर है कि वह अपने से किसी का नाम चढा दे और जब आप जाय तो कहे कि नगर पालिका मालिकान दर्ज नही करता उसके लिये आप कोर्ट में जाइये और वहां से आदेश ले कर आइये। तब नाम चढेगा, अच्छे भले आदमी को वह न्यायपालिका के चक्कर लगवा देता हैं। ऐसे मामले जज खफीफा व मुंसिफ गर्वी की कोर्ट में करोडों की संख्या है जो इस मामले की शिकार हुए।एक और मामला है नगर निगम जो करता है वह यह है सरकार ने कहा है कि लडके व लडकी का बाप की जायदाद में बराबर का हक है लेकिन कुछ ले देकर निगम वाले लडके का नाम चढा देते है और लडकियों का गायब कर देते है। ज्यादा बोलने पर कोर्ट जाने की बात करते है इस तरह के भी करोडो मामले कोर्ट में है। सबसे बडी बात यह है कि इस तरह की घपलेबाज अधिकारियों के खिलाफ किसी भी तरह की कारवाई नही होती है।जिसके कारण वह मुकदमों की संख्या बढाता तेा है साथ ही भ्रष्टाचार भी फैलाता है।

अब बात करते है विकास प्राधिकरण की । शहर का विकास इस विभाग के हवाले होता है जिसमें लोगों का मकान का नक्शा पास करना होता है। अगर नक्शा नही पास है या गलत है तो वह अपराध है और उसके तहत उसे सजा भुगतनी पडती है। होता यह है कि आदमी विकास प्राधिकरण नक्शा पास कराने जाता है लेकिन जब तक वह प्राधिकरण के दलाल के पास नही जाता नक्शा नही पास होता। अगर आपने गलती से किसी के आष्वासन पर मकान बनवा लिया तो बनते समय प्राधिकरण कुछ नही बोलेगा और न ही कोई नोटिस देगा । वह आपका मकान बनने का इंतजार करेगा, जब मकान बन जायेगा तो उसके अधिकारी आयेगें और नोटिस देकर मकान तोडने की बात करेगें। फिर मामला हल होगा और ले देकर आप अपना मकान बचाने में कामयाब होगें। यह काम भी उनका दलाल इंस्पेक्टर से मिलकर करायेगा।अगर नही हुआ तो मकान बनाने के अपराध में आप पर मामला दर्ज होगा और आप जेल जायेगें।क्यांेकि कोर्ट सरकारी अधिकारी का कहना ही मानती है आम आदमी का नही।इतने के बाद भी आप का मकान इनकी कृपा पर रहेगा जब तक चाहेगें वसूली करते रहेगें।

अब तहसील की बात , दो काम होता है खसरा व खतौनी का , तहसीलदार मालिक होता है लेकिन उसके जगह नायब तहसीलदार , कानूनगो व लेखपाल होते है। कुछपैसे के लालच में गलत काम करना इनके फितरत में है। किसी का नाम किसी खाते में चढा दिया और उसकी खतौनी व खसरा जारी कर दिया । जिसका नाम डाले वह उसे बेच दे और जो खरीदे वह पुलिस की मद्द की आपकी जायदाद हडप ले फिर आप क्या करेगें। शिकायत करने पर एक ओर जहां धमकी मिलती है वहीं इस बेईमानी के खिलाफ कोई कारवाई नही होती। पूरा देश इस विभाग से परेषान है। सबसे बडी परेषानी यह है कि एसडीएम के यहां यह मामला चलता है जो इस पूरे काले कारनामे का मालिक होता है।इसलिये कोई कारवाई नही होती । इसके बाद कमीशनर के यहां मामला जाता है जो कि निचले अधिकारी के आदेश केा यश करता है। फिर मामला रेवन्यू बोर्ड में जाता है जहां दलाली होती है जो हर आदमी नही कर सकता फिर हाईकोर्ट जहां हर आदमी पहुंचने से पहले स्वर्ग सिधार जाता है।बात खत्म हो जाती है इसलिये बुर्जर्ग कहा करते थे जिसकी लाठी उसकी भैंस ? यह आज के माहौल में फिट बैठता है। सवाल यह है कि इस माहौल से छुटकारा कैसे मिले। इसके लिये एसीजेएम स्तर के अधिकारियों को जिले के इन विभागों में लगाना होगा और उनका चैम्बर भी वही बनाना होगा। एक मियाद तय करनी होगी कि कितने मुकदमें रोज करना है और वह श्रेणीक्रम में यानि रोज सुनवाई के आधार पर वरीयता क्रम से चले।जिन अधिकारियों की कारगुजारी पकडी जाय उसे दंड का प्रावधान हो उनको बर्खास्त किया जाय और अर्थदंड के साथ साथ जेल भी भेजा जाय। दो साल की कम से कम सजा हो। यदि अपील करने वाला गलत अपील करे तो उसे भी दंड का प्रावधान हो उसके लिये भी यही सजा हो। शर्त यही हो कि जिस विभाग में जज लगे उसे न्यायपालिका का अधिकारी ही समझा जाय न कि उस विभाग का? जो जज सरकार के बनाये नियम से कम केस का फाइनल करे उसे भी दंड दिया जाय। इसके बाद ही जो निर्णय आये उसकी अपील जिलाजज के यहां हो।
इस काम से सबसे बडा फायदा यह होगा कि लोगों केा विभाग से कागजात लाने के नाम चक्कर नही काटने पडेगें। सभी विभागों में तत्काल आ जायेगा। रोज सुनवाई होने से अदालतों के चक्कर से आम आदमी बच जायेगा।सबसे खास बात यह है देश की न्यायपालिका व पुलिस प्रशासन जो इनके कारनामों के चलते हो रही वारदातों से परेशान है उनका बोझ हलका होगा।किन्तु फिर बात पर आकर रूक जाता हूं क्या कोई सरकार इस काम को करेगी। जबकि वह खुद इस सभी काम का हिस्सा हो और मिलबांटकर खा रही हो।

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