गुलाम दौर वाली कांग्रेस का सच

आज फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती दहाड़े मार मार कर रो रहे हैं कि मोदी ने कश्मीर को बर्बाद कर दिया । कश्मीरी नोंजवानों पर सेना गोली बरसा रही है। हमारे लोगो को हिन्दू. मुस्लिम में बांटा जा रहा है । भाई चारा खत्म कर दिया इस सरकार ने । फारुख अब्दुल्ला जी दिलीप कुमार कौल वह शख्स हैं जिन्होंने बांदीपोराएकश्मीर के एक चौराहे पर गिरिजा टिक्कू की आरे से काटी गई सिर से लेकर श्नीचेश् तक दो हिस्सों में बटी देह देखी थी । पोस्टमार्टम के बाद गिरिजा टिक्कू की देह को फिर से चमड़े के धागे से सिला गया था उम्र थी सिर्फ 23 वर्ष ज़िंदा शरीर को दो हिस्सों में काटने से पहले गिरिजा को हिन्दू होने की सज़ा दी गई थीए दर्जनों जेहादियों ने उनके साथ बर्बर बलात्कार भी किया था ।

        कश्मीरी पंडितों को काफिर हिन्दूश् जा रहा है|  कहकर राह चलते गालियां दी जाती थीं। ट्रेन में दूसरों के सर पर भी पैर रखकर निकल जाने को तैयार आप बीच रास्ते में नमाज़ के लिए बिछाई गयी चटाई को देखते ही पेशाब रोककर बैठ जाते हैं या लांग जम्प मार के इस तरह निकलते हैं कि चटाई का कोना भी आपसे छू न जाये तो इसलिए नहीं कि आप बड़े धैर्यवान और सहिष्णु हैं अपितु इसलिए कि नमाजी को देखकर आपकी पूँछ आपके पैरों के बीच आ जाती है। भीड़ भरी सड़कों पर भी फर्राटा भरती आपकी बाइक या गाड़ी मुस्लिम बस्ती के पास जाते ही रेंगने लगती है और लोगों की जान की परवाह न करने वाले आप वहाँ मुर्गियों और बकरियों तक की जान की परवाह करने लगते हैं तो इसलिए नहीं कि आप बड़े संस्कारी नियम पालन करने वाले और अनुशासनप्रिय हैं अपितु इसलिए कि ऐसी बस्ती के पास पहुँचते ही आपकी जान हलक में आ जाती है। 

पुलिस वालों से भी बहस करने में कभी पीछे ना रहने वाले आप किसी से बहस होने पर चार गोल किताबों को खंगालने से हमें यह पता चला कि बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदनमोहन मालवीय जी नें 14 फ़रवरी 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी रोकने के लिए याचिका दायर की थी ताकि उन्हें फांसी न दी जाये और कुछ सजा भी कम की जाए तब कोर्ट ने मालवीय जी से कहा कि आप कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष है इसलिए आपको इसके साथ नेहरु, गाँधी और कांग्रेस के कम से कम 20 अन्य सदस्यों के पत्र भी लाने होंगे।जब मालवीय जी ने भगत सिंह की फांसी रुकवाने के बारे में नेहरु और गाँधी से बात की तो उन्होंने इस बात पर चुप्पी साध ली और अपनी सहमति नहीं दी। इसके अतिरिक्त गाँधी और नेहरु की असहमति के कारण ही कांग्रेस के अन्य नेताओं ने भी अपनी सहमति नहीं दी। यदि नेहरु और गाँधी एक बार भी भगत सिंह की फांसी रुकवाने की अपील करते तो हम निश्चित ही उनकी फांसी रद्द कर देते लेकिन पता नहीं क्यों मुझे ऐसा महसूस हुआ कि गाँधी और नेहरु को इस बात की हमसे भी ज्यादा जल्दी थी कि भगत सिंह को फांसी दी जाए।

उनकी किताब के अनुसार गाँधी और अंगे्रजों के बीच जब समझौता हुआ उस समय इरविन इतना आश्चर्य में था कि गाँधी और नेहरु में से किसी ने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को छोड़ने के बारे में चर्चा तक नहीं की।उन्होनें अपने दोस्तों से कहा कि हम यह मानकर चल रहे थे कि गाँधी और नेहरु भगत सिंह की रिहाई के लिए अड़ जायेंगे और हम उनकी यह बात मान लेंगे।भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी लगाने की इतनी जल्दी तो अंग्रेजों को भी नही थी जितनी कि गाँधी और नेहरु को थी क्योंकि भगत सिंह तेजी से भारत के लोगों के बीच लोकप्रिय हो रहे थे जो कि गाँधी और नेहरु को बिलकुल रास नहीं आ रहा था ।यही कारण था कि वो चाहते थे कि जल्द से जल्द भगत सिंह को फांसी दे दी जाये यह बात स्वयं इरविन ने कही है।इसके अतिरिक्त लाहौर जेल के जेलर ने स्वयं गाँधी को पत्र लिखकर पूछा था कि ष्इन लड़कों को फांसी देने से देश का माहौल तो नहीं बिगड़ेगा, तब गाँधी ने उस पत्र का लिखित जवाब दिया था कि आप अपना काम करें कुछ नहीं होगा।इस सब के बाद भी यदि कोई कांग्रेस को देशभक्त कहे तो निश्चित ही हमें उसपर गुस्सा भी आएगा और उसकी बुद्धिमत्ता पर रहम भी हसेंगें।

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