हम आजाद हैं!

independence_day1हमारे देश की भव्यता भगवान भास्कर की भाँति दृश्य, स्पृश्य एवं श्लिष्ट्य है। यहाँ का अतीत वैदिक काल, रामायण, महाभारत, तथागत, शंकर, मंडन काल से लेकर तुलसी, कबीर, रामानन्द, रामानुजाचार्य, मौर्य, गुलाम, लोदी, पठान काल तक प्रवहमान रहा। हमारी संस्कृति की आत्मा पर बार-बार आघात किये गये। अल्लामा इकबाल ने कहा, ‘कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी’। इस ‘कुछ’ बात के लिए मेरा कहना है कि हमारा अध्यात्मवाद हम भारतीयों के रोम-रोम में समाहित है। हम राख की ढेर में संपुटित होते हैं किन्तु हम राख नहीं होते, हम आग होते हैं। हममें प्रज्वलनशक्ति होती है। और यही प्रज्वलनशक्ति हमें नवनिर्माण की ओर अग्रसर करती है।
हम अपनी आजादी की 70वीं वर्षगाँठ मना रहे हैं। समय अपनी मन्थर गति से चलता रहा और हमारा देश भी। 70 वर्ष की दीर्घ अवधि में देश ने अनेक उतार-चढ़ाव देखे। अवांछित चार-चार युद्धों की विभीषिका से उबरे। 1971 के बाद देश की प्रगति के विषय में सोचने का अवसर मिला। किन्तु क्या हम अपने अभीप्सित को प्राप्त कर सके? विपुल जनसंख्या वाले इस देश के पास आखिर किस वस्तु का अभाव था कि आज भी हमें देशवासियों के जीवनस्तर को सुधारने के लिए इतना संघर्ष करना पड़ रहा है?
गुलामी की विषम परिस्थितियों से गुजरते हुए जब हमने अपना तन्त्र स्थापित किया था तो देश एक अदृश्य सुखद कल्पना से गुजर रहा था। भय और भूख से मुक्ति की आकांक्षा थी। किन्तु नैतिक प्रतिबद्धता के अभाव में हम गिरते-उठते रहे। स्थिति यहाँ तक पहुँच गयी कि देश के भीतर ही देश को खोखला करने वाले दीमक पैदा हो गये। जयचन्दों और मीरजाफरों से देश को मुक्ति नहीं मिल पाई। देश की आत्मा कही जाने वाली संसद पर आक्रमण किये गये। जम्मू-कश्मीर में हम आज तक भारतीय संविधान को लागू नहीं कर सके। परिणाम आज हमारे सम्मुख है कि आज वहाँ पाकिस्तान का झंडा फहराने का दुस्साहस किया जा रहा है। देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय जेएनयू में देशविरोधी नारे लगाये जा रहे हैं। क्या हमारे स्वतन्त्रता सेनानियों ने इसी आजादी की कल्पना की थी? इससे हमारी राजनीतिक प्रतिबद्धता पर प्रश्नचिह्न खड़े होते हैं।
विलम्ब से ही सही किन्तु देश की वर्तमान सरकार ने इसका संज्ञान लिया है और यह एक सन्तोष का विषय है। हमारे प्रधानमन्त्री ने चन्द्रशेखर आजाद के गाँव जाकर एक नयी परम्परा की शुरुआत की है। हमने अब सच्चे अर्थों में अपने सेनानियों को याद किया है। और जब हम अपने उन रणबाँकुरों को अपनी स्मृतियों में सँजोएंगे तो उनके स्वप्नों को साकार करने की दिशा में भी आगे बढ़ पायेंगे। आजादी का अर्थ उच्छृंखलता नहीं हो सकता बल्कि देश के संविधान का सम्मान करते हुए उसकी परिधि में ही अपनी स्वतन्त्रता को कायम रखना होगा। तभी हम अपने देशभक्तों को सच्ची श्रद्धांजलि समर्पित कर पायेंगे।
अन्त में मैं अपने देशवासियों को  नवीन संकल्पों के साथ देश को आगे बढ़ाने और भारतीय मूल्यों तथा परम्पराओं को स्थापित करने का आह्वान करता हूँ और आशा करता हूँ कि समस्त देशवासी आपसी सौहार्द्र और बन्धुत्व की भावना से सराबोर होकर विश्वपटल पर भारतीय गरिमा को पुष्पित और पल्लवित करने में सहयोग करेंगे।

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